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Showing posts from January, 2017

भीड़ में खोई हुई एक परछाई

Wajood भीड़ में खोई हुई एक परछाई सा लगता है अब वजूद मेरा, ढूँढती है ज़िंदगी ज़र्रे ज़र्रे में जैसे सबूत मेरा, जो खो गया है उसका इंतेज़ार है क्यूँ, जो मिट गया उसकी ही पहचान है क्यूँ, क्यूँ रातों की खामोशियों में गुम है शोर सा, क्यूँ आईने में लगता है साया किसी और का, क्यूँ राहें लगती हैं अजनबी, क्यूँ उम्मीदें सब लगती हैं झूठी, क्यूँ धूप में भी अंधेरोन का मंज़र सा है, क्यूँ दुआओं में भी बुर्री यादों का असर सा है, क्यूँ ज़िंदगी का चेहरा लगने लगा है अजनबी, क्यूँ रूठने लगी है मुझसे मेरी तक़दीर ही, वक़्त से टूट गया है लम्हा मेरा, अधूरा सा है हर एक किस्सा मेरा, एक राह सी है जिस पर कोई आता जाता नहीं, साँसों का जैसे जिस्म से अब कोई नाता नहीं, एक थमा हुआ पल और उसमें ठहरी हुई सी उम्मीद लिए, हम खड़े हैं वहीं जहाँ चोर्र गये तुम और मूद्दके देखा भी नहीं. Medhavi 28.01.17

🤗|ना जाने क्यूँ ख़ामखा ही|

Khaamakha... ना जाने क्यूँ ख़ामखा ही रास्तों पर टिक-ती है नज़र, गुज़र गया है कब का वो मोहब्बत का मंज़र, बे-अदब यह ख़याल फिर भी क्यूँ तेरी ओर ले जाते हैं, लम्हा तोड़ तोड़ हम बार बार इसे समझाते हैं, है बे-सबर यह तन्हाई, और बे खबर तू मेरे दर्द से, हैं बिखरी हुई सौगातें गुज़रे कल की, और टूटी हुई कुछ बेशर्म उम्मीदें, फिर भी ख़ामखा क्यूँ एक ख्वाब लिए बैठे हैं, तुम कर चुके 'ना' कब का और हम 'हां' जवाब सुनने बैठे हैं. Medhavi 16-01-17

🤗|आधी अधूरी सी एक झलक थी|

आधी अधूरी सी एक झलक थी, दूरियों से फासलों तलक थी, हवा में घुली हुई बेरूख़ी थी, और अगन एक जो ना बुझी थी. अंधेरोन में गुज़रा जो साया था, दिल ने कहा वो बस तुम्हारा था, अजनाबीयों से बन गये हम तुम कब, जो ना सोचा यह वही सिलसिला था. गूँजी हवाओं में बीती बात कोई, याद आई फिर तुमसे पहली मुलाक़ात भी, कुछ अलग ना लगा फिर दो पल जो गुज़रे, तहे अजनबी तब, और फिर अब अजनबी हैं. Medhavi 08.01.17

🤗|सोचा आज की खत लिखें|

सोचा आज की खत लिखें, तुम्हे यूँ ही, बेमतलब लिखें. खामोशियों की तस्वीर उतारें, तूफ़ानों का ठहराव सावारें, बेरंग ज़िंदगी में होली सी लायें, और बेहद गहराइयों के जाम बनायें. सोचा आज की खत लिखें, तुम्हे यूँ ही, बेमतलब लिखें. कुछ ताल्लुक बढ़ायें तुमसे, कुछ बतायें और पूछें तुमसे, कुछ सवाल हों लफ़्ज़ों में लिपटे हुए, कुछ ख़याल हों लम्हों में उलझे हुए. सोचा आज की खत लिखें, तुम्हे यूँ ही, बेमतलब लिखें. जिससे पढ़ तुम बस मुस्कुराव, इंतेज़्ज़ार में हक़ीक़तों के, नये ख्वाब सजाओ. फिर खत को दोबारा जब पढ़ना, उसके लिए एक जवाब भी लिखना, क्यूंकी बाकी सब गुम जाता है वक़्त के साथ, पर इन खातों की ज़िंदगी रहती है किस्मत के हाथ.

🤗|आज फिर तुम्हारी यादों की गूँज|

Khayaal आज फिर तुम्हारी यादों की गूँज कानों में खनक उठी, अकेले बैठ मैं ना जाने क्यूँ किसी पुरानी बात पे हंस पड़ी, पर फिर ख़यालों का कारवाँ बढ़ते बढ़ते आयेज निकल गया, और तुम्हारी बेवाफ़फाई के वो अनगिनत पल, वक़्त फिर ज़हेन में भर गया, सोचा था तुम और मैं, मैं और तुम, बँधे तहे एक डोर से, मगर तुम बीच मझदार यूँ ही, गये मुझको छोड़ के, सवाल भी खुद से है, जवाब भी मालूम है, परछाईयाँ हैं कुछ, और कुछ उदासियों की ढूंड है, पर छ्चाँव में खोए साए की तरह तुम सामने हो कर भी मेरी तलाश हो, गुज़र गये हो ज़िंदगी से फिर भी, क्यूँ तुम अब भी मेरे आज हो, ना टोड्ड़ो मुझे, फिर ना दो नज़र का धोका कोई, काश टूटे यकीन का भी होता कहीं सौदा कोई, यही कुछ ख़याल देखो फिर मॅन को झंझोड़ड़ गये, देखो फिर तुम मुझे छुए बिना ही कैसे मुझको तोड़ गये. Medhavi Jan 1'17