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Long. बहन की शादी का सफरनामा

एक प्यारे दोस्त ने कहा इतना अच्छा लिखती हो तुम, तो कम से कम आज के लिए कुछ लिखना तो बनता है, तो आज सोचा की यादों के बक्से के कुछ क़िस्सों को धूप दिखा दूं, अपनी बहन की शादी पर उनकी उनके गुज़रे बचपन से फिर मुलाक़ात करा दूं, फिर सोचा कहाँ से शुरू करूँ, क्यूंकी यह सफ़र जितना उनका है, उतना मेरा भी है, और यादों के इस बक्से का एक ही पता है - हम! घर के बड़े-बुज़ुर्ग बताते हैं, और कुछ तस्वीरें भी गवाह हैं, की हम पहली मुलाक़ात से ही, एक दूसरे के ख़यालों को ज़ुबान दिया करते थे, सब जब एक साथ बैठ कर अंताक्षरी खेलते थे, हम घर के किसी कोने में साथ बैठ कर ख्वाब बाँट-ते थे. बचपन से ले कर अब तक का वक़्त इतना खूबसूरत और यादगार रहा है, की समझ नहीं आता कौन से किससे की बात पहले करूँ? गर्मियों की छुट्टियाँ और मिट्टी के घर, नानी से सुनी वो कहानियाँ, और मेरठ वाले घर की छत, बे-उम्र बातें और लंबी रातें, सब लोगों की यही चिंता, कि कितना वक़्त काफ़ी होगा, इन दोनो के लिए, शायद, ज़िंदगी भी कम पड़ेगी. दी, आपसे मिल कर बचपन से अभी तक बस एक ही बात को, बार बार मैने समझा है, कि हम दोनो का संयोग