यादों की दराज
छू कर देख सकते यादों को तो कैसा होता, कुछ मेरे कमरे की उस दराज के जैसा होता, उस दराज में गुज़रे वक़्त के कुछ पुर्ज़े बिखरे पड़े हैं, बचपन से ले कर जवानी तक के लम्हे जमे हुए हैं. कुछ पुराने खत, कुछ काग़ज़ के टुकड़े, कुछ राज़ की बातें, कुछ खोटे सिक्के, बिन बात के दिए हुए कुछ तोहफे, और कुछ यूयेसेस वक़्त के अधूरे सपने. जब जब इन चीज़ों को देखती हूँ मैं, जैसे बचपन से फिर मुलाक़ात हो जाती है, इनको यूँ ही हाथों में ले महसूस करती हूँ मैं, और खुशी से आँख भर भी आती है. कुछ घम भी है क्यूंकी वक़्त ने कुछ यारियाँ धुँधला दी, पर खुशी ज़ादा है क्यूंकी सच्ची यारियाँ सवार दी, यह दराज मेरी सबसे कीमती चीज़ है, क्यूंकी इसमें बिखरी अनगिनत यादों की गठरी है, जो मुझे मेरे बचपन, मेरी जवानी से बाँधे रखती है, मुझे याद दिलाती है की कुछ चीज़ें बदल जाती हैं, और कुछ कभी नहीं बदलती, कुछ बातें भुलानी पड़ती हैं, और कुछ यादें बना कर सवार्णी पड़ती हैं, मेरे बचपन का पुलिंदा, मेरी जवानी की कहानी, यह दराज है मेरी ज़िंदगी की सबसे खूबसूरत निशानी. Yaadon ki daraaj... Chhoo kar dekh sakte yaadon ko t...