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Showing posts from January 21, 2015

तू खुद सा था...

तेरी ख़ासियत यही थी, की तुझमें सब तुझ सा था, ना तू था छवि किसी की, ना था तू किसी ख्वाब जैसा, बस था तू अपने जैसा. हर अदा तेरी खुद की थी, ना तू बना किसी के जैसा, तू अपना रब, अपनी वजह है, तुझमें हासिल हो आईना सा, क्यूंकी तू बस खुद की तरह है. तुझे कह ना पाई शायद, या जताने का ख़ौफ्फ था दिल को, तुझे पा कर भी लगता था शायद, खो दूँगी ही यूँ ही तुझको. कभी बनी मैं संगदिल सी, कभी मोहब्बत की बरसात कर दी, कभी रूठ गयी मैं यूँ ही, कभी देख के तुझको इबादत कर ली. मैं बदली लाखों दफ़ा पर, एक ज़ररा भी तेरा ना बदला, यकीन होने लगा वफ़ा पर, क्यूंकी तू ना कभी बदला. तुझमें तेरी ही अदा है, यूँ ही नहीं हर ज़ररा मेरा फिदा है, तेरे सामने से जो गुज़रे, शायद तुझे ना देखे, पर एक लम्हे को ही वो शक़स, मेरी चाहत का हक़ ले ले. तुझे सराआहना मेरी इप्तदा है, इश्क़ की यह इम्तिहान है, मुझे समझो या ना समझो, बस खुद से बनके रहना, बदलने देना मंज़िलों को, पर खुद से बैर ना करना. मेधावी 22.01.14