तुम संग यूँ राहतों का काफिला निकल पड़ा
तुमको पा कर, हासिल करने की, चाहत ना हुई कभी, तुम संग यूँ राहतों का, काफिला निकल पड़ा. तुम्हे देख, छूने की तमन्ना ज़रूर थी, तुम्हे छू जो हवा चली, अरमान मुकम्मल हुआ. तुम्हारा हाथ थाम, दुनिया से दूर चलते कहीं, पर तुम संग यह राहें ही, मंज़िल लगने लगी. तुमको सुन कर, क़ैद करना चाहा, हर लफ्ज़ तुम्हारी आवाज़ का. खामोशियाँ भी कीमती, तेरे संग लगने लगी. तुम्हारी आँखों में, उतरे अश्क़ को करना चाहा रवाना, आँख मेरी कब भर आई, पता ना चला. तुम्हारे होंठों तक, भेजी मुस्काने कई मैने, दुआ-यें भी सब मेरी, तेरे नाम हो गयी. हवाओं के ज़रिए, भेजा संदेस तुझे स्पर्श का, बरसात यह भिगो तेरा दामन, और पाक हो चली. तुमको पा कर, हासिल करने की, चाहत ना हुई कभी. तुम संग यूँ राहतों का, काफिला निकल पड़ा.