Para उस से बातें करते करते उस रात

उस से बातें करते करते उस रात मैं यूँ ही सुबह तक पहुँच गयी. बातें तो हो रही थी कुछ दिनों से मगर वो एक रात लंबी थी बड़ी. आज कल के वक़्त में जहाँ लफ़्ज़ों को खतों के ज़रिए नहीं पर मोबाइल के ज़रिए एक पल में पहुँचाया जा सकता है, उस रात शायद हमने एक दूसरे को सौ दो सौ चिट्ठियाँ लिख डाली थी.

सुबह के चार बजे जब हमें यह समझ आया की हमको प्यार हो गया है, मैं यहाँ मुस्कुरा रही थी और वो मीलों दूर वहाँ मुस्कुरा रहा था. मैने उस से कहा की यह शुरूवात बहुत अनोखी और ख़ास है, इसे यादगार और खूबसूरत बनाने के लिए कुछ करना चाहिए. अब ज़ाहिर सी बात है, सुबह चार बजे कैसे कुछ करते, सही से खुश भी नहीं हो पा रहे तहे. मैं अपनी माँ के और वो अपने भाई के साथ सो रहा था. मैने उस से पूछा, "कुछ मीठा है क्या घर पे?" उसने इनकार किया. फिर मैने भी एक तरकीब निकाली. अब मुश्किल ही था की कुछ ऐसा हम दोनो के पास एक ही वक़्त पर मौजूद हो जो मीठा हो और एक ही मात्रा में हो, तो मैने उसे कहा की हो ना हो, घर में चीनी तो होगी ही, चलो वही एक चम्मच खा के हमारे इस ख़ास सफ़र की शुरूवात करते हैं. कहते हैं ना.. कुछ मीठा खाने से सब अच्छा होता है. अब चीनी से अच्छा क्या होता. हमने एक एक चम्मच चीनी खाई और उससी वक़्त एक दूसरे को एक तस्वीर भेजी जिसमें हमारे एक हाथ में चीनी थी. उस रात हमारे इस ख़ास एहसास को एक अंजाम दिया और इश्स पागलपन को प्यार का नाम दिया.

सबसे अजीब बात हमारे बारे में यह तही की हमने कभी एक दूसरे को देखा भी नहीं था. हमारी बात शुरू हुई थी यूँ ही क़िस्सी दोस्त की क़िस्सी और से लड़ाई सुलझाने के लिए. मगर इस सब में हम भी दोस्त बन गये और प्यार हो गया. हम कभी नहीं मिले थे, ना कभी बात की थी, बस यूँ ही लफ़्ज़ों का खेल खेलते थे. मुझे यह थोड़ी जल्दबाज़ी भी लगी. लगने लगा की शायद मैने ही बहुत जल्द यह फ़ैसला ले लिया, मगर उससे यकीन था की सब सही है. मैं डर रही थी, क्यूंकी दिल टूटने का अंजाम जानती थी, पर उसके लिए यह पहला प्यार था. फिर हमारा सफ़र शुरू हुआ. महीनों हमने बस यूँ ही मीलों दूर रह कर सिर्फ़ बातें की और फिर हमारे मिलने का दिन आया. हमारा प्यार बहुत गहरा हो चुका था. वो इतनी दूर हो कर भी मेरा बहुत ख़याल रखता था.

मुझे आज भी याद है की हम एक टीन के पुल पर मिले थे. वो बहुत दूर से मेरी ओर आ रहा था और मैं भी उसकी ओर बढ़ रही थी. सैकड़ों सवाल थे मन में, अजनबी से एहसास भी. कोई मुझसे मिलने इतनी दूर से आया था, पर कोई दर्र नहीं था. एक विश्वास था की वो एक सही इंसान है जिससे मैं कुछ पलों में मिलने वाली हूँ. ऐसे ही सैकड़ों सवाल उसके मन में भी ठे. मैने उस दिन सफेद सलवार सूट पहना हुआ था. मुझे याद है मैं उसके करीब गयी और उसके गले लग गयी. वो तोड़ा हड़बड्डा गया और मुझे छूने से भी कतरा रहा था. मैं हँससी और उससे देखा और कहा,"तू तो बड़ा बेकार लगता है, उफ्फ किस से दिल लगा बैठी", और वो हंस पड़ा.

उस दिन से आज का दिन भी आ चुका है. वो मेरे साथ इस तरह है जैसे हवा में खुश्बू, आसमान में रंग और ज़मीन पर कन्न हैं. उसका और मेरा यह साथ, साथ साथ रहने का कम पर साथ निभाने का ज़ादा है. अब ना जाने कब अगली मुलाक़ात होगी.. पर अभी जाना पड़ेगा, लफ़्ज़ों का खेल फिर से शुरू करना जो है.

मेधावी
12.11.14

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