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यादों की दराज

छू कर देख सकते यादों को तो कैसा होता, कुछ मेरे कमरे की उस दराज के जैसा होता, उस दराज में गुज़रे वक़्त के कुछ पुर्ज़े बिखरे पड़े हैं, बचपन से ले कर जवानी तक के लम्हे जमे हुए हैं. कुछ पुराने खत, कुछ काग़ज़ के टुकड़े, कुछ राज़ की बातें, कुछ खोटे सिक्के, बिन बात के दिए हुए कुछ तोहफे, और कुछ यूयेसेस वक़्त के अधूरे सपने. जब जब इन चीज़ों को देखती हूँ मैं, जैसे बचपन से फिर मुलाक़ात हो जाती है, इनको यूँ ही हाथों में ले महसूस करती हूँ मैं, और खुशी से आँख भर भी आती है. कुछ घम भी है क्यूंकी वक़्त ने कुछ यारियाँ धुँधला दी, पर खुशी ज़ादा है क्यूंकी सच्ची यारियाँ सवार दी, यह दराज मेरी सबसे कीमती चीज़ है, क्यूंकी इसमें बिखरी अनगिनत यादों की गठरी है, जो मुझे मेरे बचपन, मेरी जवानी से बाँधे रखती है, मुझे याद दिलाती है की कुछ चीज़ें बदल जाती हैं, और कुछ कभी नहीं बदलती, कुछ बातें भुलानी पड़ती हैं, और कुछ यादें बना कर सवार्णी पड़ती हैं, मेरे बचपन का पुलिंदा, मेरी जवानी की कहानी, यह दराज है मेरी ज़िंदगी की सबसे खूबसूरत निशानी. Yaadon ki daraaj... Chhoo kar dekh sakte yaadon ko t...

🚩दूर हो कर भी तू क्यूँ मुझमें बाकी है...

अनगिनत लम्हे गुज़रे कल के, अक्सर निगाहों के आगे जम जाया करते हैं, फिर गहराइयों में सीमटे हुए, अश्क़ कुछ दबे हुए, आँखों में पिघलते हैं... वो निगाहें अब भी क़ैद हैं, पलकों के किसी ख्वाब में, वो छुअन अब भी ताज़ी है, जिस्म के पन्नों और एहसासों की किताब में... आधी रातों की बारिश में की हुई वो बातें, अब भी सुनाई देती हैं मुझे बादलों की गरज में, सुबह की वो नर्म करवटें और उनमें दफ़्न सी मेरी साँसें, अब भी गर्म करती हैं धूप सी मेरी सुबहों में... हर दिन कुछ भुलाती हूँ तो कुछ और भर लेती हूँ तुझे खुद में, यह सिलसिला जारी है तबसे, जबसे तुम छोड़ गये हुमको तन्हा महफ़िल में, मांझी की डूबी नाव का आसरा है किनारा, हमारा तो किनारा भी बेवाफफा सा निकला... अब हंस लेते हैं कभी कभी यूँ ही तुझे याद कर के, नफ़रत करने की कोशिश आज भी जारी है, कोई समझे अगर तो हम भी समझायें खुद समझ के, की दूर हो कर भी तू क्यूँ मुझमें बाकी है...

🚩|मोहब्बत तो की हमने मगर|

मोहब्बत तो की हमने मगर, खुद से बेवफ़ाई कर बैठे, उसको ढूँढने निकले, और खुद का वजूद ही खो बैठे... अब महफ़िलों की रौनक हैं हम, पर मॅन के अंधेरों में, अक्सर टकरा जाते हैं जज़्बात गुज़रे कल से, अब उम्मीदों की सरहद हैं हम, पर टूटे हौसलों से खुद के अक्सर रूबरू हो घबरा जाते हैं हम... यह दौहरी ज़िंदगी, बाहर खुशी अंदर मातम, और उलझी हर साँस भी, बाहर आँह अंदर आस का मौसम, कुछ नहीं अगर तो मोहब्बत में दिखावा करना हम बखूबी सीख ही गये, देखो घूम को उतारना काग़ज़ पर, यह हुनर और खूबसूरती भी हम सीख ही गये.... Medhavi 02.05.17

🚩यह सैलाब अश्कों का

यह सैलाब अश्कों का , कहीं ना बहा ले जाए , मोहब्बत के कच्चे घरौंदे , जो हमने मिल के बनाए  ... डर लगता है अब क्यूँ , की तुम भुला  दोगे  हमें कभी किसी और से यूँ ही , जुड़ कर दगा दोगे हमें , कभी किसी और से यूँ ही ... ऐतबार तुम पर तो है , वह भी खुद से बढ़कर , पर तुम्हे छुपा के रखें , जहाँ न देख सके कोई तुमको , सर हम जी भर के देखें ... ना जाने कब यह तूफ़ान थमेगा , हर कतरे का यह ज़ख्म भरेगा , तुम्हे पा सकते नहीं , पर खोने का डर सताता है , ना जाने क्यूँ फिर यूँ ही , दिल फिर से भर आता है ...

🚩अब रातें लम्बी लगने लगी हैं

अब रातें लम्बी लगने लगी हैं , वक़्त कटने से कतराता है , चांदनी सिमटने सी लगी है , हवा का रुख ठहर जाता है .... कतरे तेरी यादों के जोड़ जोड़ , मुस्कान छोड़ आए हम उस मोड़ , जहाँ तेरे घर की पहली सीड़ी थी , वहीँ कहीं मेरी मुस्कान  गिरी थी ..... दिन भर कोई काम नहीं होता आजकल , तेरी तस्वीर मगर मसरूफ रखती है अब , तेरे चेहरे की गहराईयों में उतर कर , शायरी भी करने लगी हूँ मैं अब ... सुबह भारी भारी सी क्यूँ लगती है , या तेरी उम्मीद में नज़र जगती है , तेरी खुशबू लिए हर ख़याल है आता , और इंतज़ार का एक लम्हा दे जाता .... अब रातें लम्बी लगने लगी हैं , लो फिर आ गई वहीँ मैं लिखते - लिखते , मगर जैसे रात वहीँ ठहरी है अब तक , फिर गुजारनी है अब तुझे सोचते सोचते ...

🎈यूँ ही सोचती हूँ कभी

यूँ ही सोचती हूँ कभी , कदम बढाते - बढाते, शायद तुझसे टकरा जाऊं , जो मुकाम ना आ पाया था , उस मुकाम पर पहुँच जाऊं ...  जब तेरे आने की उम्मीद रत्ती भर ना हो , जब जुदाई का मंज़र सदियों का हो , तब यूँ ही चाँद यह बदल दे अपने इशारे , गर्दिश से निकल आयें मेरे सितारे ... भीड़ में भी महसूस करते हैं तुझको , कभी इस्सी भीड़ में तुझे फिर मिल जाएँ , आँगन में मेरे आये खुशबू तुम्हारी , काश सुबह उठूँ और देखूं सूरत तुम्हारी ... बदल ले किस्मत भी रुख अपना कि मोहब्बत की ताक़त कोई हमें भी समझाए , सुना है बहुत कहानियों में जो किस्सा , वो हकीकत में भी अपना कोई रंग तो दिखाए ...

🤗|यह चाँद आज कुछ बे - ईमान सा है|

यह चाँद आज कुछ बे - ईमान सा है , तेरे ख्यालों का इस पर इलज़ाम सा है , कहने को तो आता यह हर रात है , मगर ना जाने क्यूँ आज यह मेरे साथ है ... चल रहा है मेरी राहों को पकडे , तेरी आँखों के पैमानों को जकड़े , दागों के पीछे दूरियां छिपाए , तेरी खुशबू चांदनी में उतारे , आज चाँद में कुछ तो बात है , यूँ ही  नहीं यह मेरे साथ है ...