ना जाने फिर भी क्यूँ तेरा ख्वाब आ गया
बड़ी बेसब्र थी ज़िंदगी,
तेरे आने से एक ठहराव आ गया,
खुद को भुला चुके थे,
ना जाने फिर भी क्यूँ तेरा ख्वाब आ गया.
मुफ़लिसी थी जज़्बातों की,
तूने हमें कायानात यह दे दी,
बस देख लिया एक नज़र जो तूने,
हर सेहरा की गली भीग सी गयी.
मशालें जल चुकी थी,
और दरवाज़े पर दस्तकें तही सैकरों,
हम आस लगाए बैठे तहे तूफ़ानो की,
तुम आ गये और रोशनी से,
आँखें छूंढिया गयी.
अब दोष ना देना हमें,
अगर बर्बाद हो जायें बिन तेरे,
की आबाद हम तुमसे हुए थे,
आज़ाद हम तुमसे हुए थे,
यह याद रखना,
हंस लेना हम पर भी कभी यूँ ही,
और बातें यही फिर दोहराना,
हम आज भी तेरे हैं,
और कल भी तेरे रहेंगे.
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