☑️अब शायद भुला चुकी हूँ तुमको पूरी तरह मैं
अब शायद भुला चुकी हूँ तुमको पूरी तरह मैं,
यादों के वो कंकड़, अब पैरों में चुभते नहीं मेरे,
रातों के वो अनगिनत ख़याल, अब नींद नहीं तोड़ते मेरी,
हवा का झोंका अब तुमसा महेकता नहीं,
हर आने जाने वाला रास्ता मुझको अब रोकता नहीं.
आदतें थी कुछ, जिन्हे बदलते बदलते वक़्त लगा,
खत थे कुछ, जिन्हे जलाते जलाते सब्र लगा,
तस्वीरें कमरे से हटाने में वक़्त लगा,
ज़हन से गुज़रे वक़्त के दाग मिटाने में वक़्त लगा.
अब सोचती हूँ तो चेहरा धुँधला जाता है नज़र में,
दिलासा भी है की अब तुम नहीं, मेरी हर पहर में,
पर कुछ किस्से हैं जो अब तक ख्वाबों में खुद को दोहराते हैं,
पहली नज़र से आख़िरी मुलाक़ात का सफ़र फिर दिल को ले जाते हैं.
फिर भी खुद को बोलती हूँ कम से कम झूठ यह ही,
अब शायद भुला चुकी हूँ तुमको पूरी तरह मैं.
Medhavi
13.04.17
13.04.17
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