Para|और अब आदतें भी बदलेंगी|

आज फिर सवा नौ के अलार्म के बिना भी, नींद खुल गयी. चलो कम से कम परसों की तरह आधी नींद में तुम्हे जगाने को फोन नहीं किया. फिर कमरे से निकलते हुए दो चम्मच साथ ले जा रही थी, फिर खुद पर हंस कर एक वापस रख दिया. मेस में जा कर देखा तो छोले - कुलचे बने थे, फिर दो की जगह चार उठा कर, अंदर जा कर, मक्खन से सेंक ही रही थी, की याद आया की अब तुम नहीं हो, क्या कहूँ, आदतें हैं, लगने में वक़्त नहीं लगा, पर अब जाते जाते जाएँगी.

नाश्ते के वक़्त तुम अंडा चील दिया करते थे, और फिर मेरे आँख बाँध कर के दूध पीने पर गिनती करते थे, मेरी प्लेट उठा कर रखते, और ब्रेड को सेंक लाया करते थे. आज कल मैं खुद ही सब कर लेती हूँ. फिर पूरा दिन बेवजह छोटी छोटी बातें जो आदतें बन गयी हैं, सताती हैं, हसाती हैं और रूलाती भी हैं. दोपहर का खाना आजकल मैं नहीं खाती, वो आचार की शीशी तुम्हारे कमरे में ही रह गयी है, उसके बिना खाने में स्वाद ही नहीं आता. फिर भी कभी कभी मेस चली जाती हूँ. खाना बनाने वाले अक्सर तुम्हारा ज़िक्र किया करते थे, आजकल पूछते नहीं, शायद मेरी हँसी के पीछे छुपी मायूसी, अब छुप नहीं पाती.

शाम की चाय अब अकेले बैठ के पीने की आदत डाल रही हूँ, ढलते सूरज से ले कर तारों के चमकने तक, बस वहीं बाहर बैठ के गाने सुनती हूँ. कभी कभी तुम्हारी याद में तुम्हारी पसंद का केक खा लेती हूँ, तो कभी आधी रात को मैगी खाते हुए हँसती हूँ, क्यूंकी यह कुछ आदतें अब भी मुझे अच्छी लगती हैं. रात के खाने के वक़्त जब अकेले बैठती हूँ, कोई ना कोई साथ देने आ जाता है, बातें करने के लिए, पर ऐसा लगता है कानों से ज़हेन तक आवाज़ें पहुँचती ही नहीं. एक हाथ से खाना सीखा ही गये तुम और दाल चावल या बिर्यानी अब हाथ से ही खाती हूँ मैं.

कभी कभी यूँ ही निकल पड़ती हूँ, चलते हुए किसी राह पर, और जब किसी मोड़ पर कोई याद टकरा जाती है, तो वहीं बैठ कर खुद से दो चार बातें कर लेती हूँ. यह यकीन दिलवाना ज़रा मुश्किल है की जो था वो सब झूठ था, दिखावा था, क्यूंकी मेरी ज़िंदगी बदल गयी, मेरी हस्ती बदल गयी. सब बदल गया, पर यह आदतें हैं की बदलती ही नहीं, ज़िद्दी, ढीठ, बदतमीज़. हर दिन खुद को दोहराती रहती हैं.

अब इन आदतों के साथ जीने की आदत सी पड़ गयी है, मगर यह आदतें बदलनी हैं, क्यूंकी तुम नहीं लौउटोगे, और अब तुम्हारा इंतेज़्ज़ार भी नहीं, और शायद तुमसे प्यार भी नहीं. पर यह आदतें बड़ी प्यारी हैं, इनसे जुड़ी यादें बहुत सारी हैं, इनसे पीछा छुड़ाना भी है और साथ रखने की तमन्ना भी है, पर अब सब बातों को पीछे छोड़ नयी आदतें बनानी हैं, जो तुमसे जुड़ी ना हों. थोड़ा मुश्किल है, क्यूंकी ना जाने क्यूँ हर दूसरी बात तुमसे बँधी सी है, ना चाहते हुए भी टकरा जाती हैं ख़यालों से. पर अब हम बदलेंगे, क्यूंकी वक़्त बदल गया, हमारा रिश्ता बदल गया, और अब आदतें भी बदलेंगी.

Comments

  1. Haan aadatein buri h.... Pr Badalna accha h... Amazing one! 😢

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