कहते हैं क्या इसको ही मोहब्बत

वक़्त गुज़रता ना था पहले,
अब देखो मेरी सुनता नहीं,
गुज़र जाता है बिन इशारा किए.

तेरे साथ चलते चलते ना जाने क्यूँ,
सफ़र यह लगता है हसीन मुझको मंज़िल से भी.

बैठ कर यूँ ही रास्ते में कहीं,
करते रहे बचकानी बातें हम यूँ,
जैसे गुज़रा ही नहीं हम पर बुरा ज़रा भी
ना जाने कब भुला बैठे हर दर्द हँसी हँसी में हम.

सितारे ना थे आसमान में आज रात,
फिर भी चाँदनी में थी जाने क्या बात,
नज़दीक आ रहे थे हम या यह भी साज़िश तही कोई,
की जड गया यूँ ही अनकहा सा यह एहसास.

कुछ था नशा हवाओं में भी,
और कुछ तहा शायद तेरे साथ का असर,
चलते चलते अजनबी राहों पे हम,
भूल बैठे थे हम की जाना है घर.

अब आ गये हैं हम कुछ हक़ीक़त के करीब,
फिर भी तेरी दी मुस्कुराहटें हैं साथ ही,
ख्वाब जो देखने की हैसियत इस तक़दीर की नहीं,
दे रही हैं वही ख्वाब तेरी कही अनकही बातें अब.

जागना भी नहीं और नींद आती नहीं,
सताती भी है और चैन भी देती है अब,
कहते हैं क्या इसको ही मोहब्बत,
देखो ज़रा हम को भी यह हो गयी है क्या.

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