🎈Ghum

भागती  रही  बंजरों  की  ओॅर , 
बहार  की  उम्मीद  ले  कर ,
अंजान  हाकीकतों  से ,
ज़लजलों  की  भीड़  ले  कर ...

टूट  गया  हर  भ्रम ,
एक  दफा  बस  टकराने  से ,
छू  गया  एहसास  फिर ,
बरसात  का  सेहराओं  से ...

चुभने  लगी  हवायें ,
खारोंचने  लगे  उजाले ,
गम  की  परछाई  ले ,
फिर  हुए  दर्द  मेरे  हवाले ...

खुद  को  झोंख  भी  डाला ,
फिर  भी  कुछ  ना  उसको  भाया ,
ज़िन्दगी  ने  फिर  झटके   से ,
मुझसे  हाथ  यूँ  चुडाया ...

-मेधावी 
12.11.15

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