इश्क़ का अंजाम ना पा सके

बे-मतलब सा रिश्ता कोई,
बे-नाम भी, बदनाम भी,
बिखरे हुए से किससे का वजूद लिए,
फिरता है बेशरम सा सारे-आम भी...
ना कोई राह, ना मंज़िल,
बस गुज़रता सा काफिला,
ना मोहब्बत कह पाए जिससे,
यह है वो अधूरा सिलसिला...
हम देते रहे जिसे इबादत का नाम हंस कर,
उस डोर में एक पल भी वो बाँध ना सके,
इश्क़ का रुतबा तो कब का हासिल कर चुके,
बस इश्क़ कर के, इश्क़ का अंजाम ना पा सके...
Medhavi

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