Para लकीरें जो मिट गयी थी

लकीरें जो मिट गयी थी उस बूढ़े पेड़ से, उनको ढुँधलाई सी यादों ने आज फिर छू लिया, जिस गली से गुज़रने से कतराते रहे बरसों, क्यूँ आज दिल ने वही रास्ता चुन लिया. वो नुक्कड़ पे छाई की खुश्बू और सड़क पर सूखे पत्ते वैसे ही थे, वो खाली बगीचा और उसमें लिपटे वक़्त के टुकड़े वैसे ही थे.
थम गये कदम भी और गुज़रे सैकरों लम्हे निगाहों के आगे, थम गया दरिया काफिलों का, उन अनगिनत फासलों का, दिल की पनाहों का, आवाज़ सुनी तही शायद तुम्हारी, या कदमों की आहट ही थी वो, या थे तुम भी वहीं पर, छुप के देखते मुझको भी, वहाँ थे बहुत से, बहुत सी हक़ीक़तें थी, ख्वाब थे टूटे हुए और मिट्टी हुई सरहदें थी.
मैं चल रही थी लेकिन लम्हा ठहेर गया था, तस्वीर तेरी ले कर हर झोंका बह रहा था, वो टूटी हुई दीवार आज भी वहीं है, जहाँ बैठ हुँने घंटों खामोशियाँ महसूस की थी, जहाँ की हर कड़ी एहसासों के घुँगरू-ओं में महफूज़ सी थी, पर आज उस दीवार पर कोई ना बैठा था, और हर कोना उस सड़क का जैसे अधूरा अधूरा सा था.
मैं निकल आई उस गली से, फिर इन मसरूफ़ रास्तों पर, जहाँ खोया था तुझको, उन्ही मजबूर काफिलों पर, ना उम्मीद तुझे पाने की, ना ऐतबार भुला देने का, ना कोशिश ज़िंदगी सवारने की, ना हिम्मत फिर मोहब्बत करने की, 'बस एक और दिन' खुद को बोलती हुई, बाहर हस्ती, अंदर रोटी हुई, यूँ ही ज़िंदगी गुज़ार देने का इरादा तो है, और टूट ती हिम्मत बाँधने तेरी यादों का हौसला भी है.

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