|वो रोज़ रोज़ यह कहता है|

इश्क़ ना करना मुझसे,
वो रोज़ रोज़ यह कहता है,
फिर खुद ही आँखों क ज़रिए,
इस दिल में मेरे वो उतरता है.

हाथ पकड़ वो मेरा,
बस देखा मुझको करता है,
फिर शाम सवेरे यूँ ही,
मेरे साथ वो हर पल रहता है.

कैसे ना करूँ मैं इश्क़ उस से,
उसकी मौजूदगी का नशा सा होने लगा है,
कैसे ना करूँ मैं इश्क़ उस से,
हर ज़ररा उसमें ही खोने लगा है.

वो छुए बिना क्यूँ मेरे ज़हेन को छू जाता है,
छू ले अगर वो मुझको तो क्यूँ हर कटरा मेरा शरमाता है,
ऐसी ना मैं तही जो वो मुझे बनाने लगा,
बिन जाने यूँ ही बस मेरा इश्क़ आज़माने लगा.

इश्क़ ना करना मुझसे,
वो रोज़ रोज़ यह कहता है,
पास रहना पर दिल ना लगाना,
वो रोज़ रोज़ यह कहता है.

ना जानू मैं भी किसी मंज़िल पर जुड़ेंगे रास्ते हमारे,
पर इश्क़ तो हो ही जाएगा मुझे,
उसके दिल की नहीं खबर मुझको,
पर मोड़ कोई तो आएगा,
जब शायद वो कह जाएगा,
जो ना कह सके हम अब तक,
मंज़िल कोई मिल जाएगी उस लम्हे तक.

मेधावी
03.10.14

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